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Mahabodhi Temple : बोधगया को कहते हैं ज्ञान की नगरी, जानें महाबोधि मंदिर के बारे में

Tags : #bihar_gk, #bpsc, #bodhgaya, #temple   Author : Puja
Updated : 18-Nov-2023 👁 191




Mahabodhi Mandir: महाबोधि मंदिर बोधगया में स्थित प्राचीन धार्मिक स्थलों में एक है, जिससे लोगों की आस्था जुड़ी है. मंदिर का संबंध भगवान बुद्ध से है. जानें मंदिर से जुड़ी आस्था और विशेषताओं के बारे में.

 

Mahabodhi Temple, Bodh Gaya: बोधगया, बिहार की राजधानी पटना से लगभग 115 किलो मीटर दूर दक्षिण- पूर्व दिशा में स्थित है और गया जिला से सटा हुआ एक शहर है. यहां गंगा की सहायक नदी फल्गु नदी तट (Phalgu River) के किनारे पश्चिम दिशा में स्थित महाबोधि का प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर का संबंध सीधे तौर पर भगवान बुद्ध से है. साल 2002 में महाबोधि मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई.  जानते हैं इस मंदिर के इतिहास और धार्मिक महत्व के बारे में. साथ ही जानते हैं बोधगया को क्यों कहा जाता है ज्ञान की नगरी.

महाबोधि मंदिर का इतिहास

पूरी तरह से ईंटों से बना बोधगया का महाबोधि मंदिर सबसे प्राचीन बौद्ध मंदिरों में एक है. कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी से पूर्व इस मंदिर का निर्माण कराया था. इसके बाद कई बार मंदिर स्थल का विस्तार और पुनर्निमार्ण किया गया. 52 मीटर की ऊंचाई वाले इस मंदिर के भीतर भगवान बुद्ध की सोने की मूर्ति है, जहां भगवान बुद्ध भूमिस्पर्श मुद्रा में हैं.

बोधगया को क्यों कहा जाता है ज्ञान की नगरी

बोधगया वह स्थान है जहां, भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. इसलिए बौद्ध भिक्षुओं के लिए बोधगया को दुनिया का सबसे पवित्र शहर माना जाता है. कहा जाता है कि करीब  531 ईसा पूर्व में यहां फल्गु नदी के किनारे गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. उन्होंने यहां स्थित बोधि वृक्ष के पास बैठकर कठोर तपस्या की. दरअसल बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में एक पीपल का पेड़ है. इसी पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. बोधि का अर्थ ‘ज्ञान’ से होता है और वृक्ष का अर्थ ‘पेड़’ है. इसलिए इस वृक्ष को ज्ञान का पेड़ कहा जाता है और बोधगया को ज्ञान की नगरी.

भगवान बुद्ध को बोधगया में इसी वृक्ष के पास ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, इसलिए भी यहां बुद्ध के अनुयायी और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की भीड़ जुटती है. इसके अलावा भी अन्य धर्मों के लोग यहां पूजा-अनुष्ठान लिए और  प्राचीन पर्यटन स्थल के रूप में देखने के लिए बोधगया आते हैं.

बोधि गया में भगवान बुद्ध के ज्ञान के वो सात सप्ताह

  1. बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद पहला सप्ताह बिताया था.
  2. मंदिर के उत्तर भाग के बीच में अनिमेश लोचन चैत्य है, जहां भगवान बुद्ध ने अपना दूसरा सप्ताह बोधि वृक्ष को एकटक देखते हुए बिताया.
  3. मंदिर की उत्तरी दीवार के पास रत्न चक्रमा है, जहां भगवान बुद्ध ने अपना तीसरा सप्ताह बिताया. भगवान ने जहां-जहां कदम रखें वहां कमल खिल गए.
  4. भगवान बुद्ध ने अपना चौथा सप्ताह रतनगढ़ या रत्नाघर चैत्य नामक स्थान पर बिताया, जिसे ज्वेल हाउस कहते हैं. कहा जाता है कि इस दौरान बुद्ध के शरीर से छह रंगों की किरणें निकली थी. बौद्ध अनुयायी ने इन्हीं रंगों को अपना झंड़ा बनाया.
  5. भगवान बुद्ध का पांचवा सप्ताह पूरब की ओर अजपाला निग्रोध वृक्ष के नीचे बीता. यहां पत्थर का एक स्तंभ है जो अजपता वृक्ष का प्रतीक है.
  6. भगवान बुद्ध ने अपना छठा सप्ताह मंदिर परिसर के दक्षिण में स्थित कमल के तालाब या मूचालिंडा सरोवर के पास बिताया. इस सरोवर के भीतर भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित है जिसकी रक्षा करते हुए फण फैलाए हुए एक सर्प है.
  7. भगवान बुद्ध के अपना सातवां सप्ताह मंदिर के दक्षिण-पूर्व में स्थित राजयाताना वृक्ष के नीचे बिताया.

 महाबोधि मंदिर के बारे में अन्य जानकारी

  • महाबोधि मंदिर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है. साल 2002 में महाबोधि मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई.
  • महाबोधि मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट पत्थरों द्वारा किया है. मंदिर की दीवारों पर मां लक्ष्मी, हाथी, मोर, फूलों आदि जैसे चित्र मौजूद हैं.
  • महाबोधि मंदिर के पश्चिम में एक विशाल पीपल का वृक्ष है, जिसे बोधि वृक्ष कहा जाता है.
  • कहा जाता है कि सम्राट अशोक की बेटी संघमित्रा धर्म प्रचार के लिए बोधगया से मूल बोधिवृक्ष की एक शाखा श्रीलंका ले गई थी, जिसे उन्होंने अनुराधापुर शहर में लगा दिया.

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